बिहार का प्राचीन इतिहास (important for all exams in bihar) Bihar History Part-1

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प्राचीन इतिहास

प्राचीन बिहार की जानकारी के लिये पुरातात्विक साहित्य, यात्रा वृतान्त व अन्य देशी स्त्रोत उपलब्ध हैं । प्राचीन शिलालेख, सिक्‍के, पट्टे, दानपत्र, ताम्र पत्र, राजकाज सम्बन्धी खाते-बहियों, दस्तावेज, विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतान्त, स्मारक, इमारतें आदि विशेष महत्वपूर्ण होता है । ऐतिहासिक स्मारक या पुरातात्विक सामग्री व अन्य वस्तुएँ बिहार में उपलब्ध हैं ।

बिहार का उल्लेख वेदों, पुराणों, महाकाव्यों आदि ग्रन्थों में मिलता है । प्राचीन बिहार में मगध साम्राज्य के अनेक शासकों व जैन, बौद्ध धर्म सम्बन्धित जानकारियाँ ग्रन्थों से मिलती हैं । अनेक प्राचीन सामग्री का विवरण भारत के अनेक स्थानों एवं चीन, तिब्बत, अरब, श्रीलंका, बर्मा व दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों आदि में उपलब्ध होती हैं ।

छात्र एवं विदेशी यात्रियों के आगमन, बौद्ध-जैन धर्म के प्रचारकों, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से होने वाले व्यापार आदि के कारण प्राचीन बिहार के अनेक स्थानों, पाटलिपुत्र, वैशाली. बोधगया, नालन्दा, राजगीर, पावापुरी, अंग आदि से व्यापक सम्पर्क थे ।

पुरातात्विक स्त्रोत

बिहार में सिंहभूम, हजारीबाग, रांची, सन्थाल परगना, मुंगेर आदि में पूर्व एवं मध्य प्रस्तर युगीन अवशेष तथा प्राचीनतम औजार प्राप्त हुए हैं ।

मुंगेर और नालन्दा से पूर्व प्रस्तर एवं मध्य प्रस्तर युग के छोटे-छोटे औजार मिले हैं ।सारण स्थित चिरॉद और वैशाली के चेचर से नव-पाषाणीय युग की सामग्री प्राप्त हुई है ।ताम्र पाषाणीय युगीन सामग्री चिरॉद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से तत्कालीन वस्तुएँ एवं मृदभांड मिले हैं ।

मौर्यकालीन अभिलेख लौरिया नंदनगढ़, लौरिया अरेराज, रामपुरवा आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं तथा आहत सिक्‍के की प्राप्ति से गुप्तकालीन जानकारियाँ मिलती हैं । प्राचीन स्मारकों, स्तम्भों, अभिलेखों व पत्रों में प्राचीन बिहार की ऐतिहासिक झलक मिलती है ।

पुरातात्विक स्त्रोतों में राजगीर, नालन्दा, पाटलिपुत्र एवं बराबर पहाड़ियों की पहाड़ियों में प्राचीन कालीन प्रमुख स्मारक मिले हैं ।

साहित्यिक स्त्रोत

प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों में साहित्यिक स्त्रोत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो आठवीं सदी ई.पू. में रचित शतपथ ब्राह्मण, परवर्ती काल के विभिन्‍न पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध रचनाओं में अंगतुर निकाय, दीर्घ निकाय, विनयपिटक, जैन रचनाओं में भगवती सूत्र आदि से प्राप्त होते हैं । बिहार का ऐतिहासिक स्त्रोत वेदों, पुराणों, महाकाव्यों आदि से प्राप्त होते हैं जो निम्न विवरणीय हैं-

वैदिक संहिता (साहित्य)

प्राचीन विश्‍व के सबसे प्राचीन माने जाने वाली कृति वेद संहिता है । ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद तथा सामवेद में बिहार का उल्लेख मिलता है ।

वेदों के संहिता से रचित ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जिसमें बिम्बिसार के पूर्व घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है ।ऐतरेय, शतपथ, तैत्तरीय, पंचविश आदि प्राचीन ब्राह्मण ग्रन्थों में बिहार में अनेक राजाओं के नाम जुड़े हुए हैं । शतपथ में गांधार, शल्य, कैकय, कुरु, पंचाल, कोशल, विदेह आदि राजाओं का उल्लेख मिलता है ।बिहार का प्राचीनतम वर्णन अथर्ववेद तथा पंचविश ब्राह्मण में मिलता है जो सम्भवतः १०वीं-८वीं ई.पू. था और उस समय बिहार को ब्रात्य कहा गया है, जबकि ऋग्वेद में बिहार और बिहार वासियों को कीकर कहा गया है ।मगध शासकों की क्रूरता, वीरता एवं सैन्य शक्‍ति का उल्लेख जैन ग्रन्थ (भगवती सूत्र) में मिलता है ।आर्यों का विस्तार एवं आगमन का वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है ।

पुराण – अठारह पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्रह्मांड पुराण बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत के लिए महत्वपूर्ण हैं । इन पुराणों से शुंगवंशीय शासक पुष्यमित्र का वर्णन मिलता है जिसने ३६ वर्षों तक शासन किया । पुराणों में उत्तर युगीन मौर्ययुगीन शासकों के शासन की जानकारी प्राप्त होती है ।

पतंजलि महाभाष्य- मौर्य युगीन साम्राज्य की समाप्ति के बाद शुंग वंश का प्रतापी राजा पुष्यमित्र हुआ, जिसके पुरोहित पतंजलि थे । पतंजलि ने उनकी वीरता, कार्यकुशलता तथा भवनों पर आक्रमण की चर्चा अपनी महाभाष्य में की है ।

मालविकाग्निमित्रम्‌- यह कालिदास द्वारा रचित नाटक है जिसमें शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेखनीय वर्णन मिलता है । कालिदास यवन की आक्रमण का चर्चा करते हैं और पुष्यमित्र को अग्निमित्र के पुत्र सिन्ध पर आक्रमण कर यवन को पराजित किया था ।

येरावली- इसकी रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने की थी । इसमें उज्जयिनी के शासकों की वंशावली है तथा पुष्यमित्र के बारे में उल्लेख किया गया है कि उसने ३६ वर्षों तक शासन किया था ।

दिव्यादान- इस बौद्धिक ग्रन्थ में पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अन्तिम शासक बतलाया गया है ।

पाणिनी की अष्टाध्यायी- यह पाँचवीं सदी पूर्व संस्कृत व्याकरण का अपूर्व ग्रन्थ है ।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र- यह ग्रन्थ मौर्यकालीन इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है ।

मनुस्मृति ग्रन्थ- मनुस्मृति सबसे प्राचीन और प्रमाणित मानी गयी है, जिसकी रचना शुंग काल में हुई थी । यह ग्रन्थ शुंगकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध कराता है ।

मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार, भारवि, मेघातिथि, गोविन्दराज तथा कल्लण भट्ट हैं । यह टीकाकार हिन्दू समाज के विविध पक्षों के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त किये होते हैं ।

 

To be continued in next part…….

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